हमारे अपने सौर मंडल में मंगल ग्रह को चौथा ग्रह माना गया है, जो कि पड़ोसी ग्रह शुक्र से नजदीक है। समय-समय पर तमाम अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने मंगल ग्रह के बारे में खोज बीन की और इस संभावना को पाया कि मंगल ग्रह पर जीवन है ।

गहन रूप से इसके बारे में 1877 में जानकारी प्राप्त हुई है। इटली के अंतरिक्ष वैज्ञानिक शियापेरेली ने प्रथम बार मंगल ग्रह की परिधि के बारे में जानकारी हासिल की। शियापेरेली को ज्ञात हुआ कि मंगल ग्रह पर तमाम पानी की नहरें व नालियाँ हैं । उसको विश्वास हो गया कि मंगल ग्रह पर वास्तविक रूप से पानी के स्रोत हैं और इस आधार पर इस संभावना को तलाशा गया कि वहाँ भी प्राणी हैं ।
इस इटालियन अंतरिक्ष वैज्ञानिक की खोज ने दुनिया में सनसनी फैला दी । खासकर अमेरिका में तो इस बात को लेकर खलबली मच गयी । पर्सीवेल लॉवेल नामक एक धनी अमेरिकन ने मंगल ग्रह के अध्ययन के लिए एरीजोना की फ्लैम स्टॉफ नामक जगह पर अपना ताम-झाम खड़ा किया । लॉवेल ने सूक्ष्म निरीक्षण के लिए एक टेलीस्कोप का सहारा लिया, जिसे बाद में लॉवेल टेलीस्कोप के नाम से जाना गया । अध्ययन और निरीक्षण के दौरान लगभग हजारों के करीब उस रहस्यमय ग्रह और उसकी नहरों व नलियों के चित्र लिए गए है ।
लॉवेल को पूर्ण विश्वास हो गया कि मंगल पर जीवन है। इसी के साथ सारे अमेरिका वासियों ने भी मान लिया कि मंगल ग्रह पर प्राणी विद्यमान हैं। मंगल ग्रह के प्राणियों की बनावट और उनके साइज के बारे में तमाम विज्ञान कथाएँ प्रचलित हुई हैं। 1930 में हेलीवीन जोक नामक रेडियो कार्यक्रम के द्वारा अमेरिका के हजारों श्रोताओं ने हास्यास्पद ढंग से इस बात को जाना कि मंगल ग्रह के प्राणी धरती पर आ चुके हैं और वे धरती के बारे में खोजबीन कर रहे हैं ।

मंगल के नजदीकी अध्ययन से और विशेषतया उपग्रहों के माध्यम से अब तक तो यह सामने आ चुका है कि निश्चित ही मंगल जीवन जीने के लायक ग्रह नहीं है, क्योंकि वैज्ञानिक तथ्यों से यह जानकारी मिली है कि वहाँ का वातावरण पृथ्वी के मुकाबले 1/100 है, जो कि पूरी तरह से कार्बनडायऑक्साइड से बना हुआ है, और पूरा ग्रह आइरन-ऑक्साइड से कवर है ।

अब प्रश्न उठता है कि क्या मंगल पर जीवन है ? अभी भी इसके बारे में यह प्रश्न ही बना हुआ है । जबतक अंतरिक्ष विज्ञान आगे चलकर इस बात को सिद्ध नहीं करता है कि वहाँ पर जीवन है या नहीं, तबतक यह प्रश्न बना ही रहेगा ।