क्या मस्तिष्क के लिए सीखना संभव है? सीखना क्या होता है। अधिकांश लोगों के लिए सीखने का अर्थ होता है ज्ञानार्जन। रूसी भाषा का ज्ञान मुझे नहीं है, पर मैं वह भाषा सीख लूंगा। यदि मैं पीछे पड़ कोई भी भाषा एक निश्चित समय में सीख सकता हूं। हमारे लिए सीखने का मुख्य अर्थ है ज्ञान या कुशलता का संचयन। हमारे मस्तिष्क इसी ढांचे में संस्कार बद्ध हैं। पहले ज्ञान- संचय कीजिए और फिर उस पर आधारित कर्म।  जे कृष्णमूर्ति जाऊं तो लगभग विख्यात चिंतक  ज्ञान-संचय की क्रिया से भिन्न क्या सीखने की कोई अन्य विधा संभव है? अनुभव से हम ज्ञानार्जन करते हैं, ज्ञान से स्मृति उत्पन्न होती है, स्मृति का प्रत्युत्तर है विचार, उस विचार से कर्म का जन्म होता है, और उस कर्म से आप और सीखते हैं, इस प्रकार यह चक्र चलता रहता है।

 यही है हमारे जीवन का ढर्रा। इससे हमारी  समस्याएं कदापि हल नहीं होंगी। यह तो यांत्रिक पुनरावृत्ति है।  हम अधिक ज्ञान अर्जित करते हैं, यह सोचकर कि वह बेहतर कर्म की ओर ले जाएगा, परंतु वह कर्म भी सीमित ही होता है और इस प्रकार हम पुनरावृत्ति करते जाते हैं। ऐसे ज्ञान से उत्पन्न कोई भी क्रिया हमारी मानवीय समस्याओं का समाधान कतई नहीं कर पाएगी। तो क्या सीखने का कोई और ढंग संभव है? जानकारी के संदर्भ में सीखना नहीं, बल्कि एक पूर्णतया भिन्न प्रकार से सीखना? लाखों वर्ष बीतने के बाद भी हम अपनी समस्याओं को हल नहीं कर पाए हैं, एक-दूसरे के साथ स्पर्धा में लगे हुए हैं, एक दूसरे से घृणा करते हैं। सही मायनों में सीखने के लिए पूर्वाग्रह न रखें। आपके पास यदि पहले से ही कोई निष्कर्ष है, विश्वासों का, अवधारणाओं का, तो पूर्वाग्रह सीखने में रुकावट बन जाएंगे। महत्त्व पूर्वाग्रह का नहीं, बल्कि स्पष्टता से देखने की आवश्यकता का है।

Source:- Danik Bhaskar