लोग अक्सर सकारात्मक मनोविज्ञान का गलत मतलव निकालने लगते है जैसे कि हंसता हुआ चेहरा बनाना या विना नकारात्मक विचारों के जीना। ये बात सुनने के लिए अच्छी है, लेकिन धरातल पर लागू नहीं हो सकती इंसान के दिमाग में कभी न कभी  नकारात्मक ख्याल आते ही हैं। लेकिन इससे उसकी सखियत नेगेटिव नहीं हो जाती। The Stores Servical " नाम   की पुस्तक में लेखक जेफरी वनस्टीन सकारात्मक मनोविज्ञान को समझाते हैं यह असल में अपनी ताकतों पर गौर करना, अधिक आशावादी बनना सीखना है। इसके अलावा दृढ निश्चय   होते हुए, कृतज्ञ  होना भी है। जीवन में दृढ़ निश्चमी होना जरूरी है तो रजिलियंस यानी लचीलापन भी जरूरी है लेकिन दोनों में एक महत्वपूर्ण अन्तर है। लचीलापन तनाव का सामना करने, कठिनाई के समय में या पिछले बुरे अनुभवों के बीच सामान्य बने रहने का नाम है। कही दृढ़ निश्चम आपके सपनों की दिशा में काम करते रहना और सबसे कठिन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए आवश्यक कौशल विकसित करने का नाम है।

In सबके बीच अच्छी खबर यह है कि खुशी का निर्माण करने वाला हुनर सीखा जा सकता है, और ये सभी उम्र के लिए काम करता है। 

1. पोजिटिंग Psychology का पहला और महत्वपूर्ण हिस्सा है आशावादी होना ( से भावी जीवन के बारे में उम्मीद और विश्वास पैदा करता है। विस्टन चर्चिल के अनुसार निराशावादी हर अवसर में परेशानी खोज लेता है, जबकि आशावादी हर मुश्किल में अवसर

 2. दुसरा चरण है अपने पास मौजूद चीजों पर गौर करना | जब आप अपने जीवन में उन चीजों पर ध्यान केन्द्रित करते है जिसके लिए आप आभारी है, तो आप भावनात्मक रूप से अच्छा और सुकुन भरा महसूस करते है

3. तीसरा चरण में काम में तल्लीन हो जाना। जब आप अपने काम में पूरी तरह डूब जाते है तो ये आपका दिमाग तनाव देने वाली विचारों और कारको से दूर हटा देता है। उन गतिविधियों के बारे में याद करिए, जिन्हें करने में आपको सबसे ज्यादा मजा आता था। जब तनाव में हो और बदलाव की दरकार हो तो अपनी मनपंसद का काम करना शुरू कर दीजिये