दो मदारी थे। दोनों के पास एक-एक भालू था। दोनों अपने-अपने भालू का तमाशा दिखाकर आजीविका चलाते थे । जहाँ पहला मदारी अपने भालू को खूब पीटता वहीं दूसरा अपने भालू का खूब खयाल रखता ।


दोनों दिनभर अपने-अपने भालू का तमाशा दिखाते और संध्या होने पर एक ही जगह बाँध दिया करते ।

एक दिन पहले भालू ने दूसरे से कहा भाई तुम बड़े भाग्यशाली हो, तुम्हारा मालिक तुम्हें खूब मानता है। यह सुनकर दूसरे भालू ने गंभीर होते हुए कहा- तुम क्या समझते हो। | भाई मैं बहुत खुश हूँ ? हम दोनों में सिर्फ इतना ही फर्क है कि मैंने परिस्थिति के साथ समझौता कर लिया है । इसलिए जब मैं तमाशा दिखाता हूँ तो लोग खुश होकर पैसे फेंकते हैं जबकि तुम ऐसा नहीं करते । मन से | तमाशा नहीं दिखाने के कारण तुम्हारे मालिक को आमदनी नहीं होती है। जिससे खीजकर वह तुम्हें पीटता है । मुझसे ज्यादा तुम्हारे दुःख-दर्द को कौन समझ सकता है ? अतः परिस्थिति के साथ समझौता करना सीखो।


सहयोग का महत्व

किसी स्थान पर विशाल भवन का निर्माण हो रहा था। उस स्थान के समीप ही ईंटों का ढेर लगा हुआ था । उस ढेर में से एक ईंट मिट्टी गारे से बोली, 'गगनचुम्बी इमारतों का निर्माण हमारे अस्तित्व पर आधारित है ।' निस्संदेह भवन के बनने का श्रेय भी हमें ही मिलेगा ।


ईंटों की गर्व भरी बातें सुनकर मिट्टीगारे से रहा न गया । वह बोला 'तुम झूठ बोलती हो ।' बल्कि तुम्हें एक सूत्र में जोड़कर इस भवन को सुदृढ़ बनाने का। श्रेय हमें ही है। हमारे अभाव में तो तुम्हारे इस ढेर को एक ठोकर मारकर गिराया जा सकता है ।

मिट्टीगारे की बात को काटकर दरवाजे और खिड़कियाँ बोली- "माना तुम ईंटों को जोड़कर दीवारें खड़ी करते हो पर यदि इस मकान में खिड़की, दरवाजे नहीं होंगे तो उसमें रहने कौन आएगा ?"

इस पर वहाँ खड़ा कारीगर उनकी बातों को सुनकर बोला- "भले ही आप सब में कितना भी सामर्थ्य क्यों न हो परन्तु जब तक मेरा हाथ न लगे, सब अपने-अपने स्थान पर ही पड़े रहेंगे ।"

इतना सुनने के बाद भवन बोला- “तुमसब का महत्त्व है परन्तु उससे भी महत्त्वपूर्ण है सह अस्तित्व । इसके अभाव में किसी का व्यक्तिगत कोई महत्त्व नहीं है । इसलिए सबको अपना झूठा अभिमान छोड़कर सहयोग का महत्त्व समझना चाहिए ।