एक बार एक मनुष्य मृत्यु के पश्चात ईश्वर के साथ समुद्र के किनारे रेत पर अपना अंतिम सफर तय कर रहा था । जैसे-जैसे वह मनुष्य आगे बढ़ रहा था, वैसे-वैसे ही उसे, अपने जीवन के सुख-दुःख के क्षण में रेत पर चार-चार पैरों के निशान दिखाई पड़ते जिसमें से एक जोड़ी उसके थे एवं दूसरी जोड़ी ईश्वर के थे । किन्तु जब उसने दुःख के 'क्षणों को याद किया और पीछे पलटकर देखा तो उसे रेत पर एक जोड़ी पैरों के निशान ही दिखे ।

 ऐसा देखकर उसने भगवान् से पूछा कि आप मेरे सुख में तो मेरे साथ थे किन्तु दुःख में नहीं थे- 'ऐसा क्यों ?'

भगवान् ने मुस्कराते हुए कहा- 'पुत्र सुख' में तो मैं तुम्हारे साथ चल रहा था, परन्तु दुःख, में तुम्हें अपनी गोद में लिए हुए था ।