सत्रहवीं शताब्दी में मनुष्य ने आधुनिक वैज्ञानिक तरीकों को खोजा जिसके फलस्वरूप उसे नवीन गणित पद्धति का की हुआ जो लाभ उसकी पूर्व पौढी को प्राप्त नहीं हुआ था इस तकनीकी विकास के अतिरिक्त उसे एक और लाभ प्राप्त हुआ। पूर्व में प्राप्त संभी लाभों से कहीं ज्यादा महत्त्वपूर्ण था इससे पूर्व उसके विचार अव्यवस्थित थे तथा उसने आधारहोन को प्रमाणित तथ्य मानकर स्वीकार कर लिया था वे सभी नियम जिनका प्रयोग वह आस-पास देखी गई वस्तुओं का वर्णन कर के लिए करता था वे सभी निरीक्षण के पश्चात् प्राप्त निर्णयों पर आधारित नहीं थीं वरन उनका आधार था यह विश्वास कि प्रकार मनुष्य की रुचि, आशा एवं भय के अनुरूप है उसका विश्वास था कि सूर्य, चन्द्र, नक्षत्र आदि आकाशीय तत्व गोल-2 चूमती है इस विश्वास का आधार था उनका सौन्दर्यबोध जिसके अनुसार वृत्त या गोलाकार आकृति सुन्दर दिखाई पड़ती हैं। इसी प्रकार उसकी धारणा होती थी कि महामारी व भूचाल मनुष्य के पापों की सजा के रूप में धरती पर भेजे जाते हैं तथा वर्षा मनुष्यों के सत्कर्मों का या पुण्य का उचित पुरस्कार है। पुच्छल तारं राजा व राजकुमारों की मृत्यु की पूर्वसूचना है, ऐसा माना जाता था पक्षा या स्वर्ग से सम्बन्धित सभी चीजों को सौन्दर्यबोध या नैतिक बोध के अनुरूप ही देखा जाता था। वैज्ञानिक सोच ने इस परम्परावादी सोच का खंडन किया। यह जानने के लिए कि प्रकृति कैसे काम करती है, आवश्यक है हम स्वयं ही आशाओं, निराशाओं व पसन्द-नापसन्द को भूल जाएँ एवं केवल अपने निरीक्षण या अवलोकन द्वारा ही निर्देशित हो। 

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हालाकी सुनने में यह अत्यन्त सरल विचार प्रतीत होता है परन्तु वास्तव में यह एक क्रान्तिकारी विचार है। जब केपलर नामा वैज्ञानिक ने ये खोज निकाला कि ग्रह अण्डवृत्त में घूमते हैं न कि वृत्त में या छोटे वृत्त में, इससे मानवीय भावनाओं के अनुरूप जो प्रकृति की व्याख्या की जाती रही थी उसे बड़ा झटका लगा। वैज्ञानिक विचारधारा ने मनुष्य की सोच में एक बड़ा परिवर्तन किया वह मानने लगा कि प्रकृति अपने ढंग से चलती है, उसे जो करना है वह करती है, हमारी इच्छा या भय से उसे कुछ लेना-देशा नहीं है। प्रकृति पूर्ण रूप से हमारे अस्तित्व से बेखबर है। आधुनिक दुनिया इसी अहसास से विकसित हुई है। यह अच्छा है या बुरा, कहा नहीं जा सकता। यह एक आश्चर्य की बात है कि पश्चिम देशों में जिन्हें पश्चिमी सभ्यता एवं संस्कृति के प्रतिनिधि माना जाता है वे इस विकास से अनजान हैं। यह विचारधारा प्रारम्भ में एक बहुत छोटे समूह में आम हुई परन्तु आज़ भी वे लोग जो इस विचारधारा को मानते हैं उन्हें साहित्यिक अभिरुचि वाले लोग संकीर्ण एवं गँवार मानते हैं।

वास्तव में विज्ञान नहीं अपितु पश्चिमी वैज्ञानिक पद्धति ने मनुष्य जाति को प्रभावित किया, यह आम धारणा है। औद्योगिक क्रान्ति जो आज भी अपने शैशवकाल में है, बहुत ही साधारण रूप में शुरू होकर लैंकशायर, योर्कशायर एवं क्लयेड में फैल चुकी है। उस देश में जहाँ ये क्रान्ति पैदा हुई अत्यन्त सभ्य व्यक्तियों द्वारा अत्यधिक नापसन्द की जाती रही। इसने नेपोलियन को हगने में महती योगदान दिया केवल इस लिए लोगों ने इसे बर्दाश्त किया। परन्तु यह क्रान्ति इतनी जबर्दस्त थी कि ये पहले पश्चिम में फैली व बाद में रूस एवं एशिया में पहुँच गई जहाँ इसने पूरा बदलाव कर डाला हैं। केवल यही एक ऐसी चीज है जो पूर्व पश्चिम से सीखना चाहता है। यह सोच एक वरदान साबित होगी या अभिशाप, आज भी यह एक अनुत्तरित प्रश्न है। चाहे यह एक वरदान हो या अभिशाप, परन्तु यह सत्य है कि वैज्ञानिक तकनीकी दुनिया में बदलाव ला रही है।