The Language of Literature and Science

Literature 
साहित्यिक अभिव्यक्ति के लिए सामान्य भाषा का प्रयोग उपयुक्त नहीं है। वैज्ञानिक अभिव्यक्ति के लिए भी सामान्य भाषा का प्रयोग उचित नहीं माना जाता है। साहित्यकार की भाँति वैज्ञानिक भी सर्वसाधारण द्वारा प्रयोग की जाने वाली शब्दावली के शुद्धिकरण पर बल देता है। परन्तु साहित्यिक भाषा का शुद्धिकरण वैज्ञानिक भाषा के शुद्धिकरण से कुछ हद तक भिन्न है।

एक वैज्ञानिक का उद्देश्य होता है एक समय में एक बात को सीधे सीधे पूर्ण स्पष्टता के साथ कहना। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए वह भाषा को सरल एवं तथ्यात्मक बनाता है। दूसरे शब्दों में वह सामान्य भाया की शब्दावली एवं वाक्य संरचना का प्रयोग कुछ इस प्रकार करता है कि हर शब्द या उक्ति का एक अर्थ हो। परन्तु जब सामान्य भाषा के शब्द उसका उद्देश्य पूरा नहीं कर पाते तब वह एक नई तकनीकी भाषा व शब्दावली की खोज कर लेता है जो उसके तकनीकी जञान की अभिव्यक्ति में सहायक होती है। यह वैज्ञानिक शब्दावली इतनी उत्कृष्ट हो जाती है कि यह मात्र शब्दावली न रह कर गणित जैसी शुद्ध एवं सटीक हो जाती है।

साहित्यकार सामान्य तौर पर प्रयोग होने वाली भाषा का शुद्धिकरण पूरी तरह से भिन्न रूप में करता है। एक वैज्ञानिक का उद्देश्य एक समय में केवल एक बात कहना होता है परन्तु दूसरी ओर एक साहित्यकार का उददुश्य इससे बिल्कुल भिन होता है। मानवीय जीवन एक साथ कई स्तरों पर विभिन्न अर्थों के साथ जिया जाता है। साहित्य वह विद्या है जिसके द्वारा साहित्यकार जीवन के विविध तथ्यों एवं उनकी महत्ता को अभिव्यक्ति करता है।

Science
Science 

जब कोई साहित्यकार जन सामान्य की भाषा का शुद्धिकरण करता है तब उसका उद्देश्य एक ऐसी सशक्त भाषा का विकास करना होता है जो न केवल जीवन के एक पक्ष के अर्थ को स्पष्ट करे अपितु वह मानवीय अनुभव के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालने में समर्थ हो, ये मानवीय अनुभव चाहे व्यक्तिगत हों या जन सामान्य के। एक गुलाब क्या है? अथवा एक डेफोडिल किसे कहते हैं? या लिलि क्या है? इन प्रश्नों का उत्तर अत्यन्त तकनीकी भाषा में दिया जा सकता है चाहे वह शब्दावली बायो-कैमिस्ट्री की हो या अन्य किसी तकनीकी विषय की। परन्तु एक गुलाब का फूल गुलाब का ही है, भाषा कोई भी क्यों न हो।

एक साहित्यकार की रुचि कोष, जीन्स एवं रसायनिक मिश्रण में नहीं होती, न ही उसकी रुचि वनस्पति विज्ञान में पढ़ाई जाने वाले चीजें, जैसे कन्द का गोलाकार होना या शाखाओं की संख्या आदि में होती है। न ही वह किसी औषधि को कैसे बनाते हैं या वमन रोकने वाली जड़ी-बूटी को कैसे मिश्रित किया जाता है उसमें रुचि लेता है। उसका सम्बन्ध फूलों से सम्बन्धित उसके या अन्य लोगों के क्या अनुभव हैं इससे होता है। वह यह जानने का प्रयत्न करता है कि इन फूलों के क्या विविध अर्थ हो सकते हैं। । साहित्यकार स्वयं एक मनुष्य है व विश्व में सभी मनुष्य जीवन-यापन के लिए पसीना बहाकर कठोर परिश्रम करते हैं। अत: कह लिलि फूलों को जिन्हें जीवित रहने के लिए कोई परिश्रम नहीं करना पड़ता अत्यधिक भाग्यशाली मानता है। अत्यधिक चिन्तन जब उसे परेशान कर देता है या जब कभी वह खाली बैठ कर थक जाता है तो ये फूल जैसे डेफोडिल अचानक उसकी कल्पना में कौंध जाते हैं तथा उस उदासी एवं एकान्त वातावरण में आलौकिक सुखा की अनुभूति कराते हैं।


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