The Mother of the Sciences

 कम से कम ऐसे तीन कारण हैं जिससे दर्शनशास्त्र को एक समग्र विज्ञान कहा जा सकता है। पहला कि यह सभी विज्ञानों की आलोचना करता है, दूसरा सभी विज्ञानों में सामंजस्य स्थापित करता है तथा तीसरा सभी विज्ञानों की यह जननी है।

Science
सभी विज्ञान जैसे कि जीव विज्ञान, मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, खगोलशास्त्र, भौतिकिशास्त्र आदि सभी की आलोचना किया जाना आवश्यक है। इस प्रकार की आलोचना दो प्रकार की हो सकती है- एक वह जो प्रारम्भिक हिस्से या पूर्वपक्ष की कीजाए तथा दूसरी जो अन्त को या निष्कर्ष की कीजाए। प्राय: सभी विज्ञानों में कुछ पूर्वधारणाएँ होती हैं जिनका परीक्षण किया जाना आवश्यक है क्योंकि हो सकता है परीक्षण उपरान्त उन्हें रखने योग्य न पाया जाए। दर्शनशास्त्र का कार्य है परीक्षा लेना। प्रत्येक विज्ञान कुछ पूर्वधारणाओं पर काम करता है तथा अन्त में कुछ निष्कर्ष निकालता है। ये निष्कर्ष अन्य विज्ञानों के निष्कर्ष से कभी-कभी मेल नहीं खाते। दर्शनशास्त्र का काम है पूर्वधारणाओं एवं निष्कर्षों की तुलना करना। बोर्ड के अनुसार, दर्शन का उद्देश्य सभी विज्ञानों के निष्कर्षों में मनुष्य के धार्मिक एक नैतिक अनुभव से निकले परिणाम जोदना है जो समग्र या सम्पूर्ण को समझने में मदद करेगा यह प्रक्रिया कुछ सामान्य निष्कर्षों तक पहुँचने में भी मदद्गार डोंगी।

 बर्मा के अन्धे लोगों की कहानी किसने नहीं सुनी है? एक बार ये अन्धे व्यक्ति एक हाथी को देखने गए। लौटने पर हाथी के बारे में उनके क्या अलग-अलग विचार थे इसकी तुलना वे करने लगे। एक अन्धे व्यक्ति ने हाथी के पैर छुए थे अत: उसे हाथी पेड़ की भाँति लगा। दूसरे अन्य व्यक्ति ने हाथी की पूंछ पकड़ी थी अत: उसे हाथी एक रस्सी की भाँति लगा। जिस तीसरे अन्धे व्यक्ति ने हाथी की सूंड पकड़ी थी उसे हाथी साँप के सदृश्य लगा। चौथे अन्धे व्यक्ति ने हाथी के शरीर को छुआ था उसे हाथी एक खेत-खलिहान जैसा लगा। जब कभी भी एक वैज्ञानिक यदि यह कहे कि समस्त संसार संसार के एक हिस्से की तरह है तो शायद यह वैज्ञानिक बर्मा के इन्हीं अन्धे व्यक्तियों जैसा है। हम अलग-अलग विज्ञानों की रिपोर्ट तो प्राप्त कर सकते हैं परन्तु यह पूर्ण हाथी न देख कर उसके विभिन्न अंगों को बारी-बारी देखने के समान है। किसी भी विज्ञान की समस्त योजना को समझने के लिए समन्वय किया जाना आवश्यक है।

 सभी विज्ञानों की जन्मदात्री के रूप में दर्शनशास्त्र का एक लम्बा एवं रुचिकर इतिहास है। शुरुआती दौर में दर्शनशास्त्र एवं विज्ञान में कोई अन्तर नहीं किया जाता रहा था। धीरे-धीरे समस्या एवं उनके समाधान जटिल होते गए, नई-नई विधाएँ विकसित की गयी, विशेषज्ञों ने अपनी खोज एवं शोध का क्षेत्र सीमित कर दिया और इस प्रकार विभिन्न अलग-अलग विज्ञानों का प्रादुर्भवि हुआ। सर्वप्रथम यन्त्र से सम्बन्धित विज्ञान, गणित एवं खगोलशास्त्र का जन्म हुआ। समाजशास्त्र एवं मनोविज्ञान हाल में ही विकसित हुए

विज्ञान हैं। जो विज्ञान अभी पैदा नहीं हुए या जिन्हें स्वतन्त्र अस्तित्व प्राप्त नहीं हुआ है, उसके बारे में विचार किया जाना चाहिए। विज्ञान की नयी-नयी शाखाएँ बढ़ने से दर्शनशास्त्र का भविष्य क्या होगा, यह एक विचारणैय प्रश्न है? क्या ये नवीन विज्ञान स्वतन्त्र रूप से कार्य करेंगे? यदि हाँ तो क्या दर्शनशास्त्र का कार्य समाप्त हो जाएगा व दर्शनशास्त्र रूपी जननी विज्ञान रूपी बच्चों से दूर हो जाएगी?

किन्तु दर्शनशास्त्र का भविष्य न केवल इसके बौद्धिक क्षेत्र में अग्रणी होने की ओर इशारा करता है अपितु उसके और बढ़ते हुए, दायित्वों का भी संकेत देता है। नये-नये व कुछ-कुछ असम्बद्ध विज्ञानों को समन्वित करना उतना ही मुश्किल है जैसे अनेकानक बढ़ते हुए विज्ञानों का विकसित होना एवं उनका अपने लिए एक प्रतिष्ठित स्थान बना पाना।

 हर नया विज्ञान पूर्ण व्यवस्था एवं समग्रता के लिए एक चुनौती है। इस प्रकार दर्शनशास्त्र का कार्य और बढ़ जाता है। दर्शनशास्त्र का एक समग्र विज्ञान के रूप में पहला काम है नये-नये विज्ञानों को जन्म देना, दूसरे इन विज्ञानों की परस्पर बहस को सुलझाना तथा अन्त में अलग-अलग सोमित क्षेत्रों से सम्बन्धित सभी विज्ञानों को समन्वयित करना। विज्ञानों का जन्म व उनकी परस्पर बहस तो चलती रहेगी परन्तु दर्शनशास्त्र रूपी माँ का कार्य कभी पूरा नहीं होगा।

समन्वय स्थापित करना दर्शनशास्त्र का अगला महत्त्वपूर्ण कार्य है। हर विज्ञान अनुभव के एक विशेष पक्ष से जुड़ा हुआ होता है। एक पक्ष की जानकारी अधूरी होती है व चीजों का विकृत रूप प्रस्तुत करती है। विज्ञान का अन्तिम लक्ष्य सम्पूर्ण को समझना होना चाहिए। दर्शनशास्त्र जो सभी विज्ञानों में सर्वश्रेष्ठ है, समग्र है, किसी एक पक्ष से न जुड़ कर सम्पूर्ण की जानकारी प्रदान करता है।

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