एकबार राजा विक्रमादित्य के मन में तीन प्रश्न उठे। पहला यह कि- 'भगवान् से पहले कौन था ?' दूसरा- 'भगवान कहाँ रहते हैं और उनका तीसरा प्रश्न था- 'भगवान करते क्या हैं ?' इसका उत्तर पाने के लिए उन्होंने अपने राज्य में घोषणा की जो मेरे तीन प्रश्नों का उत्तर सही-सही देगा उसको मैं अपना आधा राज्य दे दूँगा, अन्यथा वह कठोर दण्ड का भागी होगा। उनके राज्य में किसी भी व्यक्ति ने दण्ड पाने के भय से उनके प्रश्नों का उत्तर नहीं दिया । यहाँ तक कि उनके राजकवि । कालिदास ने भी दण्ड के भय से प्रश्नों के उत्तर नहीं दिये । लेकिन उन्हीं के राज्य के एक हलवा ने राजा के पास जाकर पाँच चाँदी के सिक्के मँगवाएँ तथा राजा से कहा कि इसे गिनें ।

 राजा ने इसे गिनना प्रारंभ किया- एक, दो, तीन पाँच | हलवाहे ने फिर कहा- एक से पहले गिनिए । राजा ने कहा- एक से पहले कोई अंक नहीं । हलवाहे ने ठीक उसी प्रकार कहा कि- 'भगवान से पहले कोई नहीं है ।' उसने फिर राजा से घी मँगवाकर पूछा- 'घी किससे बनता है ?' राजा ने कहा- 'दूध से घी बनता है ।' हलवाहे ने राजा से कहा आपको पक्का विश्वास है कि दूध से घी बनता है । राजा ने उत्तर दिया- हाँ । हलवाहे ने कहा- जिस प्रकार दूध घी में ही रहता है ठीक उसी प्रकार भगवान आत्मा में रहते हैं। राजा ने उन्हें अपने राजसिंहासन पर बैठाकर कहा कि आप इतने विद्वान होकर हल चलाते हैं ।

 राजा ने पुनः कहा- आपने मेर दो प्रश्नों के उत्तर दे दिये अब आप मेरे तीसरे प्रश्न का उत्तर दें । हलवाहे ने कहा- 'अभी कुछ देर पहले आप राजसिंहासन पर बैठे थे और मैं खड़ा था, मैं अब आप खड़े हैं और मैं राजसिंहासन पर बैठा हूँ।' यही भगवान का काम है ।

वचन के अनुसार राजा ने हलवाहे को आधा राज्य

दे दिया